स्वार्थ और दया – दो भिक्षुकों की कथा : Spiritual Story in Hindi
बहुत समय पहले एक गाँव में दो भिक्षुक रहते थे। दोनों रोज़ गाँव-गाँव घूमकर भिक्षा माँगते, लेकिन उनका स्वभाव एक-दूसरे से बिल्कुल अलग था। पहला भिक्षुक अत्यंत स्वार्थी था। उसे केवल अपने पेट और अपने सुख की चिंता रहती थी। वह कभी किसी के साथ अपना भोजन या रोटी का एक टुकड़ा भी साझा नहीं करता था। दूसरा भिक्षुक करुणा और दया से भरा हुआ था। वह हमेशा दूसरों की मदद करता, चाहे उसके पास कितना भी कम भोजन क्यों न हो। गाँव वाले अक्सर कहते थे कि यह दयालु भिक्षुक किसी देवदूत जैसा है। उसकी यही दयालुता इस Spiritual Story in Hindi का मूल संदेश है।
एक सुबह दोनों भिक्षुक भिक्षा के लिए निकले। सूरज की हल्की किरणें पेड़ों के बीच से छनकर आ रही थीं। स्वार्थी भिक्षुक ने चलते-चलते कहा, “आज मैं किसी से भोजन नहीं बाँटूँगा। कल मुझे बहुत कम भिक्षा मिली थी। आज जो मिलेगा, मैं सिर्फ अपने लिए रखूँगा।” दयालु भिक्षुक ने शांत स्वर में कहा, “भाई, जीवन में दया रखना ही सच्ची भक्ति है। जितना तुम्हारा है, वह तुम तक अपने आप पहुँच जाएगा। कमी का डर तुम्हारे भीतर है, दुनिया में नहीं।”
लेकिन स्वार्थी भिक्षुक उसकी बात पर हंसते हुए बोला, “तुम अपनी दया और करुणा के चक्कर में एक दिन भूखे मरोगे।”
दोनों गाँव में पहुँचे जहाँ आज उत्सव था। गाँव वालों ने दोनों को खूब भिक्षा दी। स्वार्थी भिक्षुक अपनी पोटली कंजूसी से बाँधकर रखता गया, ताकि कोई जरूरतमंद उसे देख न ले। वहीं दयालु भिक्षुक ने जैसे ही एक भूखी बूढ़ी महिला को देखा, उसने तुरंत अपने भोजन का एक बड़ा हिस्सा उसे दे दिया। बूढ़ी अम्मा ने कांपते हाथों से वह भोजन लिया और आशिर्वाद देकर कहा, “तुम्हारे भीतर सच्ची ईश्वर भक्ति है, बेटा।” यह दृश्य इस Moral Story in Hindi की गहराई को और बढ़ाता है।
शाम होते ही दोनों जंगल के रास्ते से आश्रम लौटने लगे। अचानक तेज बारिश होने लगी। रास्ता कीचड़ से भर गया। दोनों जल्दी-जल्दी पेड़ के नीचे पहुँचे तो देखा कि एक यात्री घायल पड़ा है। वह ठंड से कांप रहा था और दर्द से कराह रहा था। स्वार्थी भिक्षुक ने कहा, “हमें इससे क्या मतलब? यह किसी और की ज़िम्मेदारी है। चलो जल्दी निकालो, मेरा भोजन गीला हो जाएगा!”
लेकिन दयालु भिक्षुक तुरंत बैठ गया। उसने अपने भोजन का एक बड़ा हिस्सा उस यात्री को खिलाया और अपना ओढ़ना उतारकर उसे ओढ़ा दिया। यह उसके भीतर की दयालुता और इंसानियत का प्रमाण था — ठीक वैसे ही जैसे प्राचीन Dharmik Kahani में दया को सबसे बड़ा धर्म बताया गया है।
आगे बढ़ते हुए दोनों को एक पुराना मंदिर दिखा। अंदर जाकर वे बैठे ही थे कि एक दिव्य प्रकाश फैल गया। प्रकाश धीरे-धीरे एक संत के रूप में बदल गया। संत ने गंभीर स्वर में कहा, “मैं पूरे दिन तुम्हें देख रहा था। तुम दोनों ने अलग-अलग रास्ते चुने — एक ने स्वार्थ को और दूसरे ने दया को।”
संत दयालु भिक्षुक के पास गए और बोले, “तुमने भूखे को भोजन दिया, ठंड में काँपते व्यक्ति को वस्त्र दिया। इसलिए आज से तुम्हारे जीवन में कभी कमी नहीं होगी।”
तुरंत उसकी पोटली अपने आप भोजन और फलों से भर गई। यह दृश्य किसी Spiritual Miracle Story जैसा प्रतीत हो रहा था।
फिर संत स्वार्थी भिक्षुक की ओर मुड़े। वह डर के मारे काँप रहा था। संत बोले, “तुम्हारे पास जो था, वह तुमने केवल अपने लिए रखा। इसलिए तुम्हें हमेशा कमी का डर सताएगा। स्वार्थ कभी सुख नहीं देता।” इतना कहकर संत अदृश्य हो गए।
धीरे-धीरे स्वार्थी भिक्षुक का भोजन खराब होने लगा जबकि दयालु भिक्षुक की पोटली हर दिन अपने आप भरती रहती। यह प्रकृति का संदेश था—कि दयालुता (Kindness) ही जीवन का सबसे बड़ा आध्यात्मिक गुण है।
उस दिन के बाद दोनों का जीवन पूरी तरह बदल गया। स्वार्थी भिक्षुक को समझ आया कि दया से बड़ा कोई धन, कोई भक्ति और कोई आध्यात्मिकता नहीं होती। सच यही है कि —
स्वार्थ अंधकार की ओर ले जाता है, लेकिन दया इंसान को प्रकाश और शांति (Peace) की ओर ले जाती है।
